मैं दो कदम चलता और एक पल को रुकता मगर...........
♡ इस एक पल जिन्दगी मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।
♡ मैं फिर दो कदम चलता और एक पल को रुकता और....
♡ जिन्दगी फिर मुझसे चार कदम आगे बढ जाती ।
♡ युँ ही जिन्दगी को जीतता देख मैं मुस्कुराता और....
♡ जिन्दगी मेरी मुस्कुराहट पर हैंरान होती ।
♡ ये सिलसिला यहीं चलता रहता.....
♡ फिर एक दिन मुझे हंसता देख एक सितारे ने पुछा..........
♡ " तुम हार कर भी मुस्कुराते हो ! क्या तुम्हें दुख नहीं होता हार का ? "
♡♡ तब मैंनें कहा................
♡ मुझे पता हैं एक ऐसी सरहद आयेगी जहाँ से आगे
♡ जिन्दगी चार कदम तो क्या एक कदम भी आगे ना बढ पायेगी,
♡ तब जिन्दगी मेरा इन्तज़ार करेगी और मैं......
♡ तब भी युँ ही चलता रुकता अपनी रफ्तार से अपनी धुन मैं वहाँ पहुँगा.......
♡ एक पल रुक कर, जिन्दगी को देख कर मुस्कुराउगा..........
♡ बीते सफर को एक नज़र देख अपने कदम फिर बढाँउगा।
♡ ठीक उसी पल मैं जिन्दगी से जीत जाउगा.........
♡ मैं अपनी हार पर भी मुस्कुराता था और अपनी जीत पर भी......
♡ मगर जिन्दगी अपनी जीत पर भी ना मुस्कुरा पाई
Monday, April 5, 2010
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