शहर की इस दौड़ में दौड़ के करना क्या है?
जब यही जीना है दोस्तों तो फ़िर मरना क्या है?
पहली बारिश में ट्रेन लेट होने की फ़िक्र है
भूल गये भीगते हुए टहलना क्या है?
सीरियल्स् के किर्दारों का सारा हाल है मालूम
पर माँ का हाल पूछ्ने की फ़ुर्सत कहाँ है?
अब रेत पे नंगे पाँव टहलते क्यूं नहीं?
108 हैं चैनल् फ़िर दिल बहलते क्यूं नहीं?
इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,
लेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.
मोबाइल, लैन्डलाइन सब की भरमार है,
लेकिन जिग्ररी दोस्त तक पहुँचे ऐसे तार कहाँ हैं?
कब डूबते हुए सुरज को देखा त, याद है?
कब जाना था शाम का गुज़रना क्या है?
तो दोस्तों शहर की इस दौड़ में दौड़् के करना क्या है
Monday, April 5, 2010
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बहुत अच्छा लिखते हैं आप
ReplyDeleteब्लॉग जगत में आपका स्वागत है...
जितने भी आपकी रचनाएँ रोमन लिपि में हैं फुर्सत निकाल कर देवनागरी में कर दीजिये...
लोगों को बहुत अच्छा लगेगा...
cool आप हैं ही...
Word Verification हटा देंगे तो और भी अच्छी बात होगी...
ख़ुश रहिये और ऐसे ही लिखते रहिये..
इन्टरनैट से दुनिया के तो टच में हैं,
ReplyDeleteलेकिन पडोस में कौन रहता है जानते तक नहीं.
Harek shabd dilme ghar kar gaya! Wah!
बहुत अच्छा लिखते हैं आप,ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है...
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